Raghuveer Sharma
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रसखान रत्नावली (सवैया -69)
बाँकी धरै कलगी सिर ऊपर
बाँसुरी-तान कटै रस बीर के।
कुंडल कान लसैं रसखानि
विलोकन तीर अनंग तुनीर के।
डारि ठगौरी गयौ चित चोरि
लिए है सबैं सुख सोखि सरीर के।
जात चलावन मो अबला यह कौन
कला है भला वे अहीर के।।
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